Chita Lagi Amavasya | Chitau Amavasya

चितउ अमावस्या: आस्था, परंपरा और श्रावण का पावन संगम

भारत विविध त्योहारों और सांस्कृतिक परंपराओं का देश है, जहां हर पर्व का अपना महत्व है। ओडिशा की धार्मिक परंपराओं में एक विशेष स्थान रखता है चितउ अमावस्या। यह पर्व जितना सरल है, उतना ही गहरा उसका आध्यात्मिक अर्थ भी है।

🪔 चितउ अमावस्या कब और क्यों मनाई जाती है?

चितउ अमावस्या श्रावण मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर जुलाई-अगस्त माह में आती है। यह दिन विशेष रूप से भगवान जगन्नाथ से जुड़ा हुआ है और पुरी स्थित श्रीमंदिर में इसका विशेष महत्व होता है।

2025 में चितौ अमावस्या 25 जून को है। आषाढ़ अमावस्या को चितौ अमावस्या भी कहा जाता है, और यह 25 जून, 2025 को बुधवार के दिन पड़ रही है।

इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के मस्तक पर 'चिता' नामक सुंदर, सोने और रत्नजड़ित अलंकार पुनः धारण कराए जाते हैं। स्नान पूर्णिमा के बाद ये आभूषण सुरक्षित रख दिए जाते हैं और चितउ अमावस्या के दिन फिर से भगवान को पहनाए जाते हैं। यह पुनःस्थापन ईश्वर की दिव्यता की पुनःप्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।

🌾 गांवों में चितउ अमावस्या की परंपराएं

पुरी के बाहर, ग्रामीण ओडिशा में यह पर्व कृषि और पितृ तर्पण से जुड़ा होता है। किसान अपने खेतों की पूजा करते हैं और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन ओडिशा के घरों में खासतौर पर ‘चितउ पीठा’(Chitau Pitha) (एक प्रकार का चावल से बना नरम पैनकेक) बनाया जाता है।

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🎨 धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

चितउ अमावस्या केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता, परंपरा और पुनर्जागरण का प्रतीक है। जिस प्रकार भगवान जगन्नाथ को उनका ‘चिता’ वापस मिलता है, उसी प्रकार यह दिन हमें भी हमारी आध्यात्मिक चेतना को फिर से जागृत करने की प्रेरणा देता है।

यह पर्व यह भी सिखाता है कि श्रद्धा हमेशा भव्यता में नहीं, बल्कि संवेदना और मौन आस्था में होती है।

🏁 निष्कर्ष

चितउ अमावस्या भले ही बाहरी तौर पर एक छोटा पर्व लगे, लेकिन इसकी गहराई अद्भुत है। यह पर्व ओडिशा की संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म का सजीव उदाहरण है। यदि आप कभी श्रावण मास में ओडिशा जाएं, तो इस पर्व की मौन भव्यता और गूढ़ अर्थों को अनुभव करना न भूलें।

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